Saturday 29 November 2014

हिन्दू धर्मग्रंथ गरुड़पुराण में अपयश से बचकर मान-सम्मान, यशस्वी, सुखी और समृद्ध जीवन जीने के लिए ही व्यावहारिक जीवन में ऐसे 5 कामों से बचने को कहा गया है। माना जाता है इनसे आखिरकार मान-सम्मान की हानि ही होती है। स्त्री हो या पुरुष इन्हें जानकर दोनों ही सही गलत कर्मों की पहचान आसानी से कर जीवन को सही दिशा दे सकता है-


गरुड़पुराण का श्लोक

दाता दरिद्र: कृपणोर्थयुक्त: पुत्रोविधेय: कुजनस्य सेवा।
परापकारेषु नरस्य मृत्यु: प्रजायते दुश्चरितानि पञ्च।।

धनवान होकर भी कंजूस होनाधन को जरूरतों पर भी खर्च करने या कंजूसी की भावना धन की लालसा बढ़ाती है। जिससे व्यक्ति पैसा कमाने की चाह में गलत कामों को अपनाने से अपयश पाता है।

पुत्र का आज्ञाकारी या संस्कारी होनाबड़ों के गलत आचरण कुसंस्कारों के रूप में संतान के कर्म, व्यवहार में भी उतरते हैं। इनके बुरे नतीजों के दोषी स्वाभाविक रूप से माता-पिता ही बनते हैं। इसलिए संतान का अच्छे कर्म और विचारों के बीच ही पालन-पोषण करें। ऐसा करने पर पुरुषार्थ से पाई प्रतिष्ठा सम्मान की हानि भी किसी भी वक्त हो सकती है।

किसी का अहित करते हुए मृत्यु होनास्वार्थ के चलते या हितपूर्ति के लिए दूसरों का बुरा करते हुए चाहे वह शारीरिक, मानसिक या आर्थिक हानि हो, दुर्घटनावश मृत्यु होना। उन बुरे कर्मो का बताता है जो आपके साथ ही परिवार के भी अपशय और उपेक्षा का कारण बन जाता है।
दरिद्र होकर भी दाता बनना
व्यावहारिक रूप से यहां दाता होने का अर्थ यही है कि आमदनी कम होने या धन अभाव होने पर भी बिना सोच-समझ रखे शौक-मौज, अपव्यय या फिजूलखर्ची करना, या फिर नाम या दिखावे के लिए पैसों का दान या मदद करना। इससे जीवन का निर्वाह और कठिन होता जाता है, जिससे जरूरतों की पूर्ति के लिए इंसान अनैतिक कामों या पाप कर्मों की और जा सकता है। 


दुष्ट या दुर्जन लोगों की सेवाअच्छी या बुरी संगति का असर जीवन पर होता है। इसलिए बुरे और दुर्जन लोगों का संग या सेवा निश्चित रूप से आपको भी अपराधी या पापी लोगों की फेहरिस्त में शामिल कर अंतत: अपयश का भागी ही बनाएगा।